मेरे हाथ की कलाई से टपका है जो
गुलाब-पंखुडीयों के रंग सा ।
मेरी रगों में बहता था अब तक
फर्श पर बिखरा है रंगोली की तरहा ।।
हर बूँद मे कहानी है कोई
अनकही अनसुनी अनदेखी ही सही ।
सिमट के रह गयी सुखी बूंदों मे
एक दास्तान जो तेरी-मेरी थी ।।
एक यह बूंद जो रुक गयी है
सोच मे डूबी सी ... तन्हा अकेली ।
"छोड आयी मै मेरे बाबुल की गलियां"
और मेरी हाथ की लकीरों मे जम गयी ।।
और इक कतरा इस लहू की नदी का
मेरी ऊंगली पकडे रुका हुआ है ।
पलटकर न जाने क्या देखता हैं
इंतजार है शायद ..... इंतजार ही होगा ।।
गुमसुम गुमशुदा खामोश कोई
चिंखती चिल्लाती सरफरोश कोई ।
अल्हड अडियलसी गुस्ताख कोई
सारी की सारी ... बेबस बन चुकी हैं ।।
टपक टपक कर हर एक बूँद
खाली कर गई मेरे जिस्म का सागर ।
और बिखर बिखर कुछ इस कदर
फर्श पर तेरी तस्वीर बना गई ।।
- कोण?
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